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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...

सजा



वह फिर आई थी आज।

कल ही तो तार मिला था।

वह पढ़कर क्षण-भर हतप्रभ-सी खड़ी रह गई थी। अपनी आंखों पर विश्वास ही न हुआ-जो कुछ लिखा गया है, क्या वह सच है?

गुलाबी रंग का कागज़ मरते हुए पक्षी के डैने की तरह उसकी कांपती उंगलियों में थरथरा रहा था। होंठ खुले थे। आंखें पत्थर की तरह ठोस-निश्चल!

"क्या हुआ दीदी?" श्रुति भागती हुई आई, पर भावना जैसे शून्य में कहीं खो गई थी।

धम्म से पलंग की पाटी पर बैठ गई–निचला होंठ दांतों के बीच दबकर नीला हो आया था।

स्थिति की भयावहता देखकर श्रुति को साहस न हुआ कि आगे बढ़कर कुछ और पूछे। वह जड़वत खड़ी रही-क्षण-भर।

भावना न जाने कब तक यों ही पाषाण-शिला-सी पलंग पर बैठी रही।

“क्या हुआ दीदी?"

"कुछ नहीं... !"

“किसका तार है?"

कोई उत्तर नहीं दिया भावना ने।

"मामा जी का?"

"नहीं।”

"फिर...?"

भावना ने इस ‘फिर' का उत्तर देने की भी आवश्यकता नहीं समझी। वह वैसी ही लेटी रही।

देर तक कमरे में असह्य सन्नाटा रहा। अंत में चारों ओर जमी बर्फ की विशाल चट्टान को तोड़ती, किसी तरह भावना बोली, “सुरू, मेरी अटैची में कपड़े रख दे। आज ही शाम की गाड़ी से चली जाऊंगी..."

“कहां दीदी?"

"अरे, अभी बतलाया नहीं ! दिल्ली जा रही हूं।...हमारी हैड मिस्ट्रेस को इन्फॉर्म कर देना।"

भावना की दृष्टि अब बार-बार घड़ी के डायल की ओर जा रही थी। सवा नौ बजे गाड़ी जाएगी, इस समय आठ पच्चीस हैं।

"रात को अकेली न रहना सुरू ! जमाना बुरा है। सुक्को मौसी को ज़रूर बुला लेना।”

“खाना खा लेना। मुझे भूख नहीं...”

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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